Friday, September 23, 2011

अनोखी, वीणा वारी नारी |

अनोखी, वीणा वारी नारी |
जाकी लखी स्रुंगर माधुरी, अगणित रति बलिहारी |
चिबुक पाणी धरी कुसुम सरोवर, ब्यीठी वीणावारी |
पुचाती लली, ' अली तू को हैं ? काकी हे घरवारी ?' |
'होईं लाली ! होईं  देवलोक की, अब लोईं अहोइं कुमारी |
यह संसार असार जानी हम, उर विराग लिय धारी' |
लली कहीं' चल, महल हमारे, करिहोइन टहल तिहारी' |
'हमहीं लली ! लेई चली सक जो मम, आदेश्हीं नहीं तारी' |
'हाँ , करी, चली 'कृपालु' चली संग, भोरी भानुदुलारी ||

राधे राधे

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