Sunday, September 4, 2011

भईं कुँवरी भूप वृषभान के

भईं कुँवरी भूप वृषभान के |
थिरकत चले झुण्ड ग्वालन अरु, झुण्ड सबई वनितानी के |
भई भीर वृषभानु  भूप घर, शोर बाधाइन  गान के |
कोऊ मछु कहत न कोऊ कछु पुचत, बंद सबई पट भान के |
कीर्ति मातु लुटावती दोउ कर, थार भरे मोतियान के |
पई 'कृपालु' सब भानुकुँवरी के, भूखे दर्शन-दान के ||

भावार्थ :- आज श्री वृषभानु रजा के घर में श्री राधिकाजी का जन्म हुआ हे, जिसके उपललख्य में थिरकते हुए ग्वालों के झुण्ड एवं नृत्य करती हुई बरजांगनाओं की वृषभानु के महल में बहुत बड़ी भीड़ हो गई हे | एवं काह्रों और बधाई गान की ही तुमुल दवानी हो रही हे | समस्त ब्रजवासी इतने प्रेम-विभोर हो गए हैं की न तो कोई किसी से कुछ कहता ही हे और न तो कोई किसी से कुछ पूछता ही हे | कृति मईया मोतियों से भरी हुई थालियों को दोनों हाथों से लुटा रही हे फिर भी, 'क्रिअप्लू' कहते हैं की कोई लुटने वाला नहीं हे क्योंकि समस्त जनता एकमात्र श्री वृषभानु नन्दिनी के दर्शन की ही भूखी हे |

( श्री कृपालुजी महाराजजी द्वारा रचित )
राधे राधे

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