Wednesday, August 31, 2011

तू मेरी हे रंगीली महल वारी |


तू मेरी हे रंगीली महल वारी |
नहीं चोदुं पछा तेरा प्यारी सुकुमारी|
रसिकों ने बताया तेरी इक प्यारी |
भोरी भरी बरसाने वारी सुकुमारी |
तू ही मेरी गति मति रति सुकुमारी |
ब्यिकुंथहूँ  सुख नहीं चह प्यारी |
मोहिं दे दे वर एसा जासों सुकुमारी |
दऊँ नित ही बुहारी गह्वर प्यारी |
थकी जाओ जब महँ सुकुमारी |
करूँ ब्यंजन दबाऊँ चरनन प्यारी|
हो जो तेरी अनबन सँग बनवारी |
नये नये चुटकुले ते हँसाऊँ प्यारी |
जेहि डगर चलन चह सुकुमारी |
तेहि डगर बुहारी देती रहूँ प्यारी |
जो भी सेवा तेरी गोपी कहें सुकुमारी |
दौरी दौरी के विभोर हो के करूँ प्यारी |
तेरी रोम रोम ब्रज रस चुवे प्यारी |
पियें नित ब्रजनारी अरु बनवारी |
निज ब्रज रस मोको भी पिला दे प्यारी |
यद्यपि हे 'कृपालु' नहीं अधिकारी |

भावार्थ :- हे महलों में वास करने वाली सुकुमारी रँगीली राधे | मेरी एकमात्र अवलम्ब स्वरुप तुम ही तो हो | हे सुकुमारी भोली भाली राधे ! तुम्हारे रसिकों द्वारा ही मुझे यह ज्ञान हयूया की मेरी तो एकमात्र तुम ही हो | हे बरसाने ग्राम वासिनी राधे ! मेरी एकमात्र आश्रय स्वरूपा तुम ही हो | तुम ही मेरी बुध्ही को प्रेरणा प्रदान करती हो | तुम ही श्रीकृष्ण-प्रेम प्रदात्री हो | राधे | में तुमसे व्यकुंथ के सुख की याचना कदापि नहीं करती | हे सुकुमारी राधे ! मेई तो यही वर माँगती हूँ- तुम एसा कृपा करो जिससे तुम्हारी लीला स्थलियों को स्वच्छ रखूँ | गह्वर वन में प्रतिदिन सोहनी सेवा करूँ | रास करते-करते जब तुम्हारा सुकुमार शारीर श्रान्त हो जावे तब में अपने हाथों से व्यंजन करूँ  | तुम्हारे कोमल चरणों का स्वाहन कर थकन मिटा दूँ | जब कभी प्रियतम के साथ रस-क्रीडा में तुम प्रतिकूलता धारण करो तब नवीन-नवीन हास्य रस पूर्ण वार्ताओं द्वारा तुम्हारा मनोरंजन रों | हे प्यारी राधे ! जिस-जिस मार्ग पर तुम्हारे चरण-ताल पड़ें उसे बुहारी द्वारा स्वच्छ करती रहूँ | तुम्हारी दसियों द्वारा जो भी सेवा-कार्य मुझे प्राप्त हो उसे आलस्य-रहित होकर प्रेमोन्मतता  पूर्वक पूर्ण करूँ | हे राधे ! तुम्हारी प्रत्येक रोम से ब्रज-रस की वर्षा होती रहती हे. ब्रज्गोपियाँ तथा श्रीकृष्ण उसका अपने ब्रज्रस का पान करा दो | मेई अधिकारी तो नहीं हूँ परन्तु तुम कृपा द्वारा एसा करने में समर्थ हो |

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