Tuesday, March 1, 2016

Words of Jagadguru Shri Kripaluji Maharajji

Words of Jagadguru Shri Kripaluji Maharajji-:

प्रिय साधक! "कहाँ हो तुम? अपने आप सोचो। सोचो और फ़ील करो और सुधार करो, तो धीरे-धीरे डेली आगे बढ़ते जाओगे।" .....श्री महाराजजी।

भगवान कहते हैं:- बस मेरा स्मरण करो। मैं सबकुछ करूँगा तुम्हारा। तुम खाली स्मरण करो, बाकी सब काम मैं करूँगा, और सदा के लिए अपना बना लूँगा।

भगवान तुमकों नहीं भूलते। वो तुम्हारे हृदय में बैठे हैं, सदा सर्वत्र। वो तुम्हारा साथ नहीं छोड़ते तुम ही भूले हुए हो अपने वास्तविक संबंधी को।

श्यामसुन्दर पर तुम्हारा इतना अधिकार है जितना अपने आप पर भी नहीं है। वे तुमसे इतना प्यार करते है जितना तुम अपने आप से भी नहीं करते। महाराजजी

अंश जीव का अंशी भगवान के सन्मुख होना ही हर दुख की एकमात्र औषधि है। ......श्री महाराजजी।

अनंत बार हमने सुना है संतो का लैक्चर और उस समय सिर को भी हिलाया.."आप बिलकुल ठीक कहते हैं गुरु जी" लेकिन फिर संसार में आसक्त हो गये। महाराजजी

"तुम लोग चिन्ता न करो ! ! जो तुमको नहीं मिला है, बह सब मैं दूँगा और जो मिला है, उसकी रक्षा करूँगा!

क्रोध आया कि सर्वनाश हुआ। बदतमीज़ कहने पर 'बदतमीज़' बन गए। आप इतने मूर्ख हैं कि एक मूर्ख ने 'मूर्ख' कह कर आपको मूर्ख बना दिया। महाराजजी

भगवान कहते हैं :- मेरी कृपा का रहस्य तुम इतना मान लो की जो कुछ भी हो रहा है वो सब "कृपा" ही है। ------श्री महाराजजी।

अपनी बुराई सुनकर सौभाग्य मानकर विभोर हो जाओ कि यह हमारा हितैषी है, क्योंकि हमारे दोषों को देखकर बता रहा है,अत: उन बुराइयों को निकालो।

राधे मोहिं चरण कमल रज कीजै! Radhe mohin charan kamal raj kejai! O radhe! Please make me the dust of your lotus feet.

गुरु' खोजने से 'गुरु' नहीं मिलते, 'हरि' खोजने से, 'हरि कृपा' से, 'गुरु' मिलते हैं। और इन्हीं 'गुरु' के माध्यम से फिर आपको 'हरि' मिलते हैं।

तू तो है अनंत प्रेमसिन्धु सुखधामा। एक बिन्दु सिन्धु ते पिला दे पूर्णकाम।।

कोई तुमसे कैसा भी कठोर से कठोर व्यवहार करे,फिर भी उसके प्रति कभी दुर्भावना आने न पावें। ख़ुद को ठीक करो। ........श्री महाराजजी।

मुख से रसिकों के आदर्शों की चर्चा की जाती है एवं मन विषय रस में लोलुप है तो ऐसा जीवन सन्त का जीवन नही है ! ऐसा जीवन व्यर्थ है! श्री महाराजजी

किसी वास्तविक रसिक की शरण ग्रहणकर , उनका सतत सत्संग करते रहने से श्रद्धा , रति , भक्ति क्रमशः स्वयं प्राप्त हो जाती

Please grace me with humility,patience which is the foundation of Bhakti. Steal my ego away ,give me selfless Bhakti.

अंश जीव का अंशी भगवान के सन्मुख होना ही हर दुख की एकमात्र औषधि है। ......श्री महाराजजी।

जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज के अनुसार समस्त वेदों शास्त्रों का सार 'राधा' नाम ही है।



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