हम साधकों को सदा यही समझना
चाहिए कि हमसे जो अच्छा काम हो
रहा है, वह गुरु एवं भगवान की कृपा से ही
हो रहा है
सदा यही सोचो कि मेरे जीवन का एक क्षण भी बिना हरि-गुरु सेवा के नष्ट न होने पाये।
जितना-जितना संसार को अपना समझते रहोगे,उतना-उतना भगवान पराया बनता जायेगा। -------श्री महाराजजी।
गुरु के साथ मनका तादात्म्य स्थापित करना चाहिये,यह मानसिक संबंध निरंतर चाहिये एवं संसारमें शरीर रखते हुए, मनसे संसार का त्याग देना चाहिये
गुरु मोर ''कृपालु'' सुनाम के, हैं अद्वितीय ''जगदगुरुत्तम'' एक मात्र भू-धाम के। जगदगुरु श्री कृपालु जी
मम मन महँ श्यामा जू, मम नैनन श्यामा जू, मम प्रानन श्यामा जू, जय जय जय श्यामा जू ।
मानव देह अमूल्य होते हुये भी क्षणिक है अतः परमार्थ साधना में एक क्षण का भी उधार सबसे बडी हानी है। ........श्री महाराज जी।
केवल कर्मधर्म से लक्ष्य प्राप्त नहीं होगा। पहले गुरु की शरण में जाओ,जो वेद को जानता हो,उससे तत्वज्ञान प्राप्त करो।फिर अभ्यास करो।साधना करो।
भगवान् के प्रति जो हमारा नित्य सम्बन्ध है, उसको हमें जानना है और सदा मानना है। -----श्री महाराज जी।
साधक जब तक पूर्ण श्रद्धायुक्त नहीं होगा , वो ज्ञान का ग्रहण नहीं कर सकता।
राधे राधे
सदा यही सोचो कि मेरे जीवन का एक क्षण भी बिना हरि-गुरु सेवा के नष्ट न होने पाये।
जितना-जितना संसार को अपना समझते रहोगे,उतना-उतना भगवान पराया बनता जायेगा। -------श्री महाराजजी।
गुरु के साथ मनका तादात्म्य स्थापित करना चाहिये,यह मानसिक संबंध निरंतर चाहिये एवं संसारमें शरीर रखते हुए, मनसे संसार का त्याग देना चाहिये
गुरु मोर ''कृपालु'' सुनाम के, हैं अद्वितीय ''जगदगुरुत्तम'' एक मात्र भू-धाम के। जगदगुरु श्री कृपालु जी
मम मन महँ श्यामा जू, मम नैनन श्यामा जू, मम प्रानन श्यामा जू, जय जय जय श्यामा जू ।
मानव देह अमूल्य होते हुये भी क्षणिक है अतः परमार्थ साधना में एक क्षण का भी उधार सबसे बडी हानी है। ........श्री महाराज जी।
केवल कर्मधर्म से लक्ष्य प्राप्त नहीं होगा। पहले गुरु की शरण में जाओ,जो वेद को जानता हो,उससे तत्वज्ञान प्राप्त करो।फिर अभ्यास करो।साधना करो।
भगवान् के प्रति जो हमारा नित्य सम्बन्ध है, उसको हमें जानना है और सदा मानना है। -----श्री महाराज जी।
साधक जब तक पूर्ण श्रद्धायुक्त नहीं होगा , वो ज्ञान का ग्रहण नहीं कर सकता।
राधे राधे
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