Wednesday, July 27, 2011

केईसी माँ तू श्यामा, श्यामा मेरी श्यामा |


केईसी माँ तू श्यामा, श्यामा मेरी श्यामा |
होयों होयों तेरा हिस सुत श्यामा,
यह कह तव श्रुति श्यामा, श्यामा मेरी श्यामा |
पुनि कट मोहिं भुलायेहू श्यामा,
माँ करुणामयी श्यामा, श्यामा मेरी श्यामा |
विष्ठा विषय खात नित श्यामा,
भ्रमत जगत नित श्यामा, श्यामा मेरी श्यामा |
लख चौरासी तनु धरी श्यामा,
लहोयो दुसह दुःख श्यामा, श्यामा मेरी श्यामा |
तव दासी माया ने श्यामा,
हरयो gyana मम श्यामा, श्यामा मेरी श्यामा |
तनु को 'मेई माना मेई श्यामा,
भूल्यो तुम मम श्यामा, श्यामा मेरी श्यामा |
जग सुख हेई मृग जल ज्यों श्यामा,
यह नहीं माना श्यामा, श्यामा मेरी श्यामा |
गुरु की कृपा भई जब श्यामा,
तब जाना अब श्यामा, श्यामा मेरी श्यामा |
मेई हूँ अंश तिहारोई श्यामा,
तू मम अंशी श्यामा, श्यामा मेरी श्यामा |
अब 'कृपालु' नहीं छोडूँ श्यामा,
पाछा तोरा श्यामा, श्यामा मेरी श्यामा |
 
भावार्थ - भक्त श्रीराधा को प्रेमपूर्ण उपालंभ देता हुआ कहता हेई - हे श्रीराधा ! तुम तो जगज्जननी कहलाती हो परन्तु मुझे आश्चर्य होता हेई तुम किसी माँ हो ? तुम्हारा वेद कहता हेई - मेई तुम्हारा पुत्र हूँ | पुनः हे करुणामयी माँ श्यामा ! तुमने मुझ किस प्रकार भुला दिया | हे राधे ! मेई कब से विषयों की विष्ठा को खता हुआ संसार में भटक रहा हूँ | हे राधे ! मैंने चौरासी लाख शारीर धारण कर असहनीय दुखों को सहन किया हे | तुम्हारी दासी माया में मेरा समस्त ज्ञान नष्ट कर दिया | मैंने शारीर को आत्मा मानकर शारीर के ही विषयों का संग्रह करने में अपना अमूल्य जीवन नस्त कर दिया | मेई आत्मा के स्वरुप को भूल गया | आत्मा की आत्मा तुम हो और तुम्हारे द्वारा ही मुझे सच्चा सुख प्राप्त होगा ज्ञान विस्मृत हो गया | मैंने सांसारिक सुखों की सस्वरता को नहीं जाना | मृगतृष्णा के सामान मेरी प्यास कभी शांत नहीं हुई | जब गुरु की कृपा मुझे प्राप्त हुई तब मेई जान सका की आत्मा की सर्वस्य तो एकमात्र तुम ही हो | हे राधे | मेई तुम्हारा अंश हूँ, तुम मेरी अंशी हो | अब जब मैंने तुम्हें अपना सजझ लिया तो कदापि तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ सकता |
 
राधे राधे

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